नमस्कार मित्रो,
मेरा नाम अभिषेक मिश्रा है और मैं कानपुरवासी हु.मेरी ज़िन्दगी भी पहले बहुत बेकार और उबाउ हुआ करती थी.जहरबुझी मेरी लाइफ जैसे तैसे कट रही थी तभी मैंने गलती से ये फ़िल्म डाउनलोड कर ली और बस यही से मेरी किस्मत खुल गयी.अब मेरा दिमाग़ पूरी तरह खुल चूका है और इस फ़िल्म के हीरो "ईशान" को देखकर मैं भी टैक्सी चलाने की सोचने लगा हु.इतनी ख़ुशी हो रही है कि आंखें फोडने का दिल करने लगा है और इसको देखने के बाद मुझे अमरत्व की प्राप्ति हो गयी है.मुझे लगता है डायरेक्टर "अली अब्बास" बहुत पहुंचे हुए बाबा है जो दुनिया को इस फ़िल्म के माध्यम से मोक्ष दिलाने आये है.तो देर ना करें
,शीघ्र इस फ़िल्म को देखकर अपने पापों से मुक्ति पाए और अपने बगल वाले दोस्त के साथ साथ खुद भी फांसी पर लटक जाये.जैसे तैसे अंदर की ख़ुशी छुपाकर इस फ़िल्म की महानता पे दो शब्द लिख रहा हु जो शायद आपको आत्मज्ञान दिलाने में मदद करेंगे.
बात करने जा रहा हु अभी हाल ही में रिलीज़ हुई फ़िल्म "Khaali-Peeli" के बारे में जिसमे काम किया है बचपन से संघर्ष करने वाली मेरी पसंदीदा अभिनेत्री "अनन्या पाण्डेय",भैंसे की चमड़ी की शकल वाले "ईशान खट्टर" और अपनी थकेली एक्टिंग से कोमा के मरीज़ को भी उठा देने वाले "जयदीप" ने.फ़िल्म की कहानी है एक टपोरी जैसा लुक देने की कोशिश करते स्वेग वाले टैक्सी ड्राइवर "ब्लैकी"(इस कुत्ते के नाम से अच्छा और कुछ नहीं मिला राइटर को) और गुंडी बनने का ढोंग करती हाई क्लास की मवाली लड़की "पूजा" की(इसका नाम भी रेड राइडिंग हुड था.और करो देर से पेमेंट लेखक की) जो एक बी क्लास के सी केटेगरी के विलन से बच के पूरी फ़िल्म में मैराथन कर रही है और इन दोनों के चक्कर में पूरी पब्लिक के साथ साथ डायरेक्टर को देने वाली आपके मुँह में दबी गालिया भी भाग रही है.
कहानी शुरू होती है एक टैक्सी ड्राइवर "ब्लैकी" से जो ऐसे एक्टिंग कर रहा है जैसे बच्चों की बर्थडे पार्टी में बुलाया गया हो.हाँ तो लोलु की शकल वाला "ब्लैकी" टकराता है गज़ब की सुन्दर दिखने वाली उसके बचपन की दोस्त "रेड राइडिंग हुड" यानि "पूजा" से जो किसी ऐसे विलन से भाग रही है जो मेढक की तरह अपने घर और गली के बाहर से ही नहीं निकलता.भागने की वजह है एक अमीर बुड्ढा जो "पूजा" को छोटी उम्र से ही चाहता है और बड़े होने तक उससे शादी करने का इंतज़ार कर रहा है.(इससे बढ़िया कहानी और क्या मिल सकती थी).हाँ तो रंगीन चाचा जी की शादी वाले दिन पूजा पीछे के दरवाजे से भाग जाती है और चाचा अपने दाए हाँथ "युसूफ चिकना" को कुत्ते की तरह उसके पीछे लगा देते है."युसूफ" जिसके नाम का खौफ दिखाया जाता है फ़िल्म की शुरुआत में वो बाकि की पूरी फ़िल्म में अस्थमा के मरीज़ की तरह परेशान दिखाई देता है और बावले गधे की तरह धंधे में जुबान, धंधे में जुबान की रट लगाता रहता है.अब "युसूफ" और "पूजा" के बीच मे आ गया है "ब्लैकी"(इससे अच्छा "टॉमी" या "मोती" नाम रख लेते) और "युसूफ" को अपनी जुबान की खातिर कैसे भी करके "पूजा" की शादी बुढऊ काका से करवानी है.फिर क्या हुआ?क्या "युसूफ" की बैंड बाजा बारात कंपनी चल पायी?क्या "युसूफ" एक बाप की तरह "पूजा" का कन्यादान बूढ़े को कर पाया?क्या "ब्लैकी" अपने मालिक मतलब विलन से लड़ कर लड़की को बचा पाया?क्या लड़की पी टी उषा के स्कूल से निकल के आयी थी जो पूरी फ़िल्म में भाग रही थी?क्या डायरेक्टर अगली फ़िल्म बनाने तक ज़िंदा बच पाया?ये सब जानना है तो आँखों के डॉक्टर की अपॉइनमेंट लेकर इस फ़िल्म को जरूर देखें.
कहानी की बात करते है जो इतनी बढ़िया लिखी गयी है कि आधे गँजे हो चुके लोग इस बार पूरे सर का हेयर ट्रांसप्लांट करा के मानेंगे.अगर अापने टाइम ट्रेवल की मूवीज नहीं देखी है तो आपको ये जरूर देखनी चाहिए क्यूंकि कब आप फ़िल्म की वर्तमान कहानी में होंगे या कब आप डायरेक्टर का गला घोंटने उसके बचपन में चले जायेंगे,ये आप खुद नहीं जान पाएंगे.कहानी ऐसे चलेगी कि इधर आपने पानी की एक घूँट पी तो आप जुरैसिक काल में चले गए और उधर गिलास ख़त्म होने के पहले आप टर्मिनेटर वाली दुनिया से होते हुए वापस अस्पताल के बेड पे आखिरी साँसे ले रहे होंगे,आपको पता भी नहीं चलेगा.जो मित्र इच्छा मृत्यु के बारे में नहीं जानते उनको बता दू के इस फ़िल्म को देखने के बाद आप खुद भी इच्छा मृत्यु की मांग करने लगेंगे.हीरो इतना स्वेग दिखाता है कि सल्लू भाई इसके सामने पानी भरते नज़र आते है.एक्ट्रेस तो ऐसी भाषा बोलती है कि मुंबई की असली टपोरी लड़कियां देखेंगी तो उनकी आँखों में ख़ुशी के आंसू आ जायेंगे.विलन का काम मुझे सबसे अच्छा लगा जो वास्तव वाले संजू बाबा के कपड़े पहनता है लेकिन हंसाने में गोलमाल के वसूली भाई से भी ज्यादा हंसाता है.इस साल का बेस्ट फ़िल्मफेयर अवार्ड इसी विलन को मिलना चाहिए जिसने ना सिर्फ एक कामचोर गुंडे का किरदार निभाया बल्कि जो एक पिता की तरह हीरोइन को एक सड़कछाप टैक्सी वाले से बचा कर बड़े घर में शादी कराने को बेचैन रहा.ये अलग बात है कि वो घर 200 साल वाले बुड्ढे का था.बात करते है गानो की तो इतने कर्णप्रिय बने है कि सुनते सुनते कब आपके कानो से खून निकलने लगे और कान का मैल साफ हो जाये,भनक तक नहीं लगेगी.वो मेले वाले गाने में एक्टर और एक्ट्रेस का मरे हुए केकड़े वाला डांस देखकर आप खुद भी सीट छोड़े बिना नहीं रह पाएंगे.कुल मिलाकर फ़िल्म बहुत बढ़िया है और आप पूरी फॅमिली के साथ इसको देख सकते है बशर्ते अगले दिन का सूरज देखना चाहते हो.
जिन बधुओं का दिया हुआ उधार ना निकल पा रहा हो वो एक बार अपने लेनदार को ये जरूर दिखा दे.वो आपका उधर भी दे जायेगा और साथ में अपने घर के कागज भी आपको पकड़ा देगा.
क्यों देखें-अगर मेरी तरह एक्ट्रेस की खूबसूरती देखकर बन्दर की तरह गुलाटी मार कर सब भूल जाते हो.
क्यों ना देखें-अगर भविष्य में मेरे रिव्यु पढ़ने के लिए ज़िंदा रहने की उम्मीद कर रहे हो.
रेटिंग-0.5/10
(ये रेटिंग के लिए कोई सवाल नहीं करेगा.मेरी स्ट्रगल वाली गर्ल के लिए इतना तो बनता है.)
धन्यवाद
महाकाल की कृपा बनी रहे
कानपुर वाला अभिषेक🙏😊





