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 नमस्कार मित्रो,

मेरा नाम अभिषेक मिश्रा है और मैं कानपुरवासी हु.मेरी ज़िन्दगी भी पहले बहुत बेकार और उबाउ हुआ करती थी.जहरबुझी मेरी लाइफ जैसे तैसे कट रही थी तभी मैंने गलती से ये फ़िल्म डाउनलोड कर ली और बस यही से मेरी किस्मत खुल गयी.अब मेरा दिमाग़ पूरी तरह खुल चूका है और इस फ़िल्म के हीरो "ईशान" को देखकर मैं भी टैक्सी चलाने की सोचने लगा हु.इतनी ख़ुशी हो रही है कि आंखें फोडने का दिल करने लगा है और इसको देखने के बाद मुझे अमरत्व की प्राप्ति हो गयी है.मुझे लगता है डायरेक्टर "अली अब्बास" बहुत पहुंचे हुए बाबा है जो दुनिया को इस फ़िल्म के माध्यम से मोक्ष दिलाने आये है.तो देर ना करें 

,शीघ्र इस फ़िल्म को देखकर अपने पापों से मुक्ति पाए और अपने बगल वाले दोस्त के साथ साथ खुद भी फांसी पर लटक जाये.जैसे तैसे अंदर की ख़ुशी छुपाकर इस फ़िल्म की महानता पे दो शब्द लिख रहा हु जो शायद आपको आत्मज्ञान दिलाने में मदद करेंगे.

बात करने जा रहा हु अभी हाल ही में रिलीज़ हुई फ़िल्म "Khaali-Peeli" के बारे में जिसमे काम किया है बचपन से संघर्ष करने वाली मेरी पसंदीदा अभिनेत्री "अनन्या पाण्डेय",भैंसे की चमड़ी की शकल वाले "ईशान खट्टर" और अपनी थकेली एक्टिंग से कोमा के मरीज़ को भी उठा देने वाले "जयदीप" ने.फ़िल्म की कहानी है एक टपोरी जैसा लुक देने की कोशिश करते  स्वेग वाले टैक्सी ड्राइवर "ब्लैकी"(इस कुत्ते के नाम से अच्छा और कुछ नहीं मिला राइटर को) और गुंडी बनने का ढोंग करती हाई क्लास की मवाली लड़की "पूजा" की(इसका नाम भी रेड राइडिंग हुड था.और करो देर से पेमेंट लेखक की) जो एक बी क्लास के सी केटेगरी के विलन से बच के पूरी फ़िल्म में मैराथन कर रही है और इन दोनों के चक्कर में पूरी पब्लिक के साथ साथ डायरेक्टर को देने वाली आपके मुँह में दबी गालिया भी भाग रही है.

कहानी शुरू होती है एक टैक्सी ड्राइवर "ब्लैकी" से जो ऐसे एक्टिंग कर रहा है जैसे बच्चों की बर्थडे पार्टी में बुलाया गया हो.हाँ तो लोलु की शकल वाला "ब्लैकी" टकराता है गज़ब की सुन्दर दिखने वाली उसके बचपन की दोस्त "रेड राइडिंग हुड" यानि "पूजा" से जो किसी ऐसे विलन से भाग रही है जो मेढक की तरह अपने घर और गली के बाहर से ही नहीं निकलता.भागने की वजह है एक अमीर बुड्ढा जो "पूजा" को छोटी उम्र से ही चाहता है और बड़े होने तक उससे शादी करने का इंतज़ार कर रहा है.(इससे बढ़िया कहानी और क्या मिल सकती थी).हाँ तो रंगीन चाचा जी की शादी वाले दिन पूजा पीछे के दरवाजे से भाग जाती है और चाचा अपने दाए हाँथ "युसूफ चिकना" को कुत्ते की तरह उसके पीछे लगा देते है."युसूफ" जिसके नाम का खौफ दिखाया जाता है फ़िल्म की शुरुआत में वो बाकि की पूरी फ़िल्म में अस्थमा के मरीज़ की तरह परेशान दिखाई देता है और बावले गधे की तरह धंधे में जुबान, धंधे में जुबान की रट लगाता रहता है.अब "युसूफ" और "पूजा" के बीच मे आ गया है "ब्लैकी"(इससे अच्छा "टॉमी" या "मोती" नाम रख लेते) और "युसूफ" को अपनी जुबान की खातिर कैसे भी करके "पूजा" की शादी बुढऊ काका से करवानी है.फिर क्या हुआ?क्या "युसूफ" की बैंड बाजा बारात कंपनी चल पायी?क्या "युसूफ" एक बाप की तरह "पूजा" का कन्यादान बूढ़े को कर पाया?क्या "ब्लैकी" अपने मालिक मतलब विलन से लड़ कर लड़की को बचा पाया?क्या लड़की पी टी उषा के स्कूल से निकल के आयी थी जो पूरी फ़िल्म में भाग रही थी?क्या डायरेक्टर अगली फ़िल्म बनाने तक ज़िंदा बच पाया?ये सब जानना है तो आँखों के डॉक्टर की अपॉइनमेंट लेकर इस फ़िल्म को जरूर देखें.

कहानी की बात करते है जो इतनी बढ़िया लिखी गयी है कि आधे गँजे हो चुके लोग इस बार पूरे सर का हेयर ट्रांसप्लांट करा के मानेंगे.अगर अापने टाइम ट्रेवल की मूवीज नहीं देखी है तो आपको ये जरूर देखनी चाहिए क्यूंकि कब आप फ़िल्म की वर्तमान कहानी में होंगे या कब आप डायरेक्टर का गला घोंटने उसके बचपन में चले जायेंगे,ये आप खुद नहीं जान पाएंगे.कहानी ऐसे चलेगी कि इधर आपने पानी की एक घूँट पी तो आप जुरैसिक काल में चले गए और उधर गिलास ख़त्म होने के पहले आप टर्मिनेटर वाली दुनिया से होते हुए वापस अस्पताल के बेड पे आखिरी साँसे ले रहे होंगे,आपको पता भी नहीं चलेगा.जो मित्र इच्छा मृत्यु के बारे में नहीं जानते उनको बता दू के इस फ़िल्म को देखने के बाद आप खुद भी इच्छा मृत्यु की मांग करने लगेंगे.हीरो इतना स्वेग दिखाता है कि सल्लू भाई इसके सामने पानी भरते नज़र आते है.एक्ट्रेस तो ऐसी भाषा बोलती है कि मुंबई की असली टपोरी लड़कियां देखेंगी तो उनकी आँखों में ख़ुशी के आंसू आ जायेंगे.विलन का काम मुझे सबसे अच्छा लगा जो वास्तव वाले संजू बाबा के कपड़े पहनता है लेकिन हंसाने में गोलमाल के वसूली भाई से भी ज्यादा हंसाता है.इस साल का बेस्ट फ़िल्मफेयर अवार्ड इसी विलन को मिलना चाहिए जिसने ना सिर्फ एक कामचोर गुंडे का किरदार निभाया बल्कि जो एक पिता की तरह हीरोइन को एक सड़कछाप टैक्सी वाले से बचा कर बड़े घर में शादी कराने को बेचैन रहा.ये अलग बात है कि वो घर 200 साल वाले बुड्ढे का था.बात करते है गानो की तो इतने कर्णप्रिय बने है कि सुनते सुनते कब आपके कानो से खून निकलने लगे और कान का मैल साफ हो जाये,भनक तक नहीं लगेगी.वो मेले वाले गाने में एक्टर और एक्ट्रेस का मरे हुए केकड़े वाला डांस देखकर आप खुद भी सीट छोड़े बिना नहीं रह पाएंगे.कुल मिलाकर फ़िल्म बहुत बढ़िया है और आप पूरी फॅमिली के साथ इसको देख सकते है बशर्ते अगले दिन का सूरज देखना चाहते हो.

जिन बधुओं का दिया हुआ उधार ना निकल पा रहा हो वो एक बार अपने लेनदार को ये जरूर दिखा दे.वो आपका उधर भी दे जायेगा और साथ में अपने घर के कागज भी आपको पकड़ा देगा.

क्यों देखें-अगर मेरी तरह एक्ट्रेस की खूबसूरती देखकर बन्दर की तरह गुलाटी मार कर सब भूल जाते हो.

क्यों ना देखें-अगर भविष्य में मेरे रिव्यु पढ़ने के लिए ज़िंदा रहने की उम्मीद कर रहे हो.

रेटिंग-0.5/10

(ये रेटिंग के लिए कोई सवाल नहीं करेगा.मेरी स्ट्रगल वाली गर्ल के लिए इतना तो बनता है.)

धन्यवाद

महाकाल की कृपा बनी रहे

कानपुर वाला अभिषेक🙏😊


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Geetha Govindam Review - Tech Reviuw

नमस्कार मित्रो,
आज के फिल्मी रिव्यु में बात करेंगे तेलगु रोमांटिक फ़िल्म "Geetha Govindam" के बारे में.साल 2018 में आयी इस फ़िल्म में काम किया है "विजय","रश्मिका मंदना" और "सुब्बा राजू" ने और ये फ़िल्म दो प्रेमियों की नफरत और फिर प्यार की कहानी को दिखाती है.
फ़िल्म की कहानी है एक कॉलेज में लेक्चरर "विजय" की जिसका बचपन से सपना है कि उसकी होने वाली पत्नी उससे बेहद प्यार करे और बहुत संस्कारी हो.एक दिन मंदिर में उसे "गीता" दिखाई देती है और उसको देखते ही "विजय" उससे प्यार करने लगता है.बस में जाते हुए "विजय" की मुलाक़ात संयोग से "गीता" से दोबारा होती है और दोनों के बीच अच्छी दोस्ती की शुरुआत होने लगती है लेकिन अनजाने में हुई एक गलती की वजह से "गीता" उससे नफरत करने लगती है और उसकी शिकायत अपने भाई "फणीन्द्र" से कर देती है.इससे पहले कि "फणीन्द्र" उसको पकड़ पाए, "विजय" वहा से भागकर अपने घर पहुँच जाता है जहा उसकी बहन की मँगनी की तैयारी हो रही होती है.बस में हुई गलती को भूलने की कोशिश करते "विजय" का सामना ज़ब अपने जीजा से होता है तब जीजा की बहन "गीता" को देखकर उसके होश उड़ जाते है.असल में उसकी बहन का रिश्ता "फणीन्द्र" से ही तय हुआ होता है."गीता" उसके परिवार की इज़्ज़त बचाने के लिए उसका नाम तो नहीं लेती लेकिन "गीता" के सामने खुद को शर्मिंदा महसूस करता "विजय" उससे नज़रें नहीं मिला पाता.फिर क्या हुआ?क्या "विजय" के बारे में जानकर "फणीन्द्र" उसकी बहन से शादी कर पाया?क्या "गीता"  उसको माफ़ कर पायी?"विजय" से कौन सी गलती हुई थी जिसकी वजह से "गीता" उससे नफरत करने लगी थी?ये सब जानने के लिए आपको ये शानदार फ़िल्म देखनी होंगी.
कहानी की बात करें तो बहुत बढ़िया कहानी लिखी गयी है."विजय" और "गीता" के बीच की नोकझोंक लोगो को पसंद आएगी.हलकी फुलकी कॉमेडी के साथ इमोशन का तड़का भी अच्छे से डाला गया है.एक्टिंग की बात करें तो "विजय" के रोल में अभिनेता "विजय" बहुत बढ़िया लगे है जिनका भोलापन किसी का भी दिल जीत लेता है.वही "गीता" के रोल में "रश्मिका" बेहद खूबसूरत लग रही है जो पूरी फ़िल्म में शुरू से अंत तक छायी रहती है.बाकि कलाकारो में "सुब्बाराजू" एक भाई के रोल में फिट दिखाई देते है जो अपनी बहन के साथ बदतमीज़ी करने वाले लडके को सजा देना चाहता है.कुल मिलाकर फ़िल्म बेहद अच्छी है और जरूर देखनी चाहिए.
बेस्ट सीन-शादी की शॉपिंग के लिए "गीता" को बाइक से ले जाने आये "विजय" का ध्यान साड़ी में बेहद खूबसूरत दिखाई देती गीता पर पड़ता है और देखता रह जाता है लेकिन "गीता" उसकी चोर निगाहो को देख लेती है और उसके पास आती है.तब घबराहट में "विजय" पैडल मारकर जल्दी बाइक स्टार्ट करने की कोशिश करता है लेकिन भूल जाता है कि बिना चाभी घुमाये वो स्टार्ट नहीं होंगी.तब "गीता" गुस्से में उसको देखते हुए बाइक की चाभी घुमाती है और बाइक स्टार्ट हो जाती है.
क्यों देखें-अगर बढ़िया रोमांटिक कॉमेडी देखने का मन बन रहे हो.
क्यों ना देखें-अगर साउथ की फिल्में देखने में खासी दिलचस्पी ना रखते हो.
रेटिंग-8.5/10
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Lapachhapi Review - Tech Reviuw


 नमस्कार मित्रो,मेरा आज का रिव्यु उन दोस्तों के लिए है जिन्होंने मेरे चैनल पे अभी तक इस फ़िल्म की स्टोरी नहीं देखी.उम्मीद है जिन्होंने वीडियो नहीं देखा उनको मेरे इस रिव्यु से फ़िल्म देखने में कुछ फायदा होगा.आज बात करने जा रहे है मराठी हॉरर फ़िल्म "Lapachhapi" के बारे में.साल 2016 में रिलीज़ हुई इस फ़िल्म को देखने का सुझाव दिया था भाई Prem Gupta ने और फ़िल्म में काम किया है "पूजा सावंत", "विजय गायकवाड़" और "उषा नाइक" जी ने और फ़िल्म की कहानी एक गॉव की कहानी पे बनी है.
फ़िल्म की कहानी है गर्भवती "नेहा" और उसके पति "तुषार" की जो निजी समस्या के चलते शहर से दूर अपनी पहचान के आदमी "भाऊराव" के साथ उसके गॉव रहने आते है."भाऊराव" की पत्नी "तुलसाबाई" उनका अच्छे से ख्याल रखती है और "नेहा" के साथ एक माँ जैसा प्यार करती है.एक रोज़ "नेहा" को एक औरत दिखाई देती है जिसके बारे में पूछने पर "तुलसाबाई" बताती है कि वो "लक्ष्मी" नाम की उसकी बहु है जिसका एक हादसे के दौरान बच्चा पेट में ही मर गया था और जो कभी माँ नहीं बन सकती.ये सुनकर "नेहा" उसको हिम्मत बंधाती है.पुराने विचारों को मानती "तुलसाबाई" जो अपने पति के बाद खाना खाती है,जादू टोना को सच मानती है,वो "नेहा" को गॉव में यहाँ वहा कभी भी दिखने वाले 3 बच्चों से दूर रहने की सलाह देती है लेकिन शहर मे पली बढ़ी "नेहा" इन बातो को दकियानूसी बता कर उसको अनसुना कर देती है.फिर एक रोज़ "नेहा" को वही बच्चे अपने साथ खेलने बुलाते है और जिज्ञासावश वो उनके पीछे चली जाती है.वहा पर मिले टेप रिकॉर्डर में बज रहा गाना जो एक माँ अपने बच्चों के लिए गा रही होती है,उसको आकर्षित करता है और वो टेप रिकॉर्डर उठा कर घर ले आती है."तुलसाबाई" उसको देख लेती है और टेप रिकॉर्डर फेंक कर उसको खरी खोटी सुनाती है.उसके बड़े व्यवहार से "नेहा" बहुत डर जाती है और "तुषार" के आने पर वहा से निकलने का फैसला कर लेती है.अपनी पत्नी के साथ गॉव छोड़ने की तैयारी करते "तुषार" पर पीछे से प्रहार होता है और वो बेहोश हो जाता है जबकि "नेहा" पर झाड़ फूंक मार कर उसको भी बेहोशी की नींद में सुला दिया जाता है.होश में आने पर वो "तुलसाबाई" को देखती है जो उसको गॉव में लगे "चुड़ैल" के श्राप के विषय में बताती है और बोलती है कि अगर वो वहा 3 दिन गुज़ार लेगी और खुद को और अपने बच्चे को चुड़ैल से बचा लेगी तो "तुलसाबाई" की बहु भी माँ बन पाएगी.इतना बोलकर वो उसको कमरे में बंद छोड़कर चली जाती है जबकि बाहर "नेहा" के पेट में पलने वाले बच्चे की गंध पाकर अभी भी वो बच्चे और चुड़ैल घूम रहे है.फिर क्या हुआ?क्या "नेहा" वहा से बचकर निकल पायी?चुड़ैल की क्या कहानी थी?क्या "तुलसाबाई" के परिवार और गॉव पर लगा श्राप मिट पाया?ये सब जानने के लिए आपको ये जबरदस्त फ़िल्म देखनी होंगी.
कहानी की बात करें तो जबरदस्त कहानी है और आपको पसंद आएगी.गॉव की पृष्ठभूमि पर फिल्मायी गयी ये फ़िल्म देखने में बढ़िया लगती है और घनी झाड़ियों के बीच बना घर,पतली पगडंडिया और रात में कमरे में दिखती खुली खिड़की देखने से डर का अहसास होता है.अंत तक चुड़ैल की कहानी जानने की इच्छा बनी रहती है.फ़िल्म के कलाकारों में "पूजा सावंत" का काम जबरदस्त है और उतनी ही उम्दा लगी है "उषा नाइक" भी जो "तुलसाबाई" के रहस्यमयी किरदार में पूरी जान फूंक देती है.नायक "विजय गायकवाड़" भी ठीक थक लगे है.बाकि कलाकारों के हिस्से लायक फ़िल्म में काम कम था तो उनका अभिनय भी अच्छा है.कुल मिलाकर फ़िल्म बढ़िया है और सबटाईटल के साथ आप इसको आराम से देख सकते है.
बेस्ट सीन-"तुषार" की गैर मौजूदगी में "तुलसाबाई","नेहा" की देखरेख के लिए उसक़े साथ ही रुक जाती है.तब आधी रात में ज़ब "नेहा" की आंख खुलती है तो उसे अपने बगल में "तुलसाबाई" नहीं दिखती लेकिन नीचे देखने पर वो उसके पैरो की तरफ बैठी होती है और जागते हुए उसे देख रही होती है.ये सीन सच में कमाल का था.
क्यों देखें-अगर एक बढ़िया हॉरर फ़िल्म देखने का मन बना रहे हो.
क्यों ना देखें-अगर मराठी भाषा की नासमझी दिक्कत लग रही हो.
रेटिंग-8/10

नोट-आज से अपने रिव्यु में बेस्ट सीन के नाम से एक नया टाईटल इस्तमाल कर रहा हु.आशा है ये नया प्रयोग आपको पसंद आएगा.आप चाहे तो फ़िल्म का अपना पसंदीदा कोई बेस्ट सीन बता सकते है.
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Awe 2018 Review - Tech Reviuw


नमस्कार मित्रो,
कल रात साउथ की एक बहुत ही जबरदस्त फ़िल्म "Awe!" देखी.वैसे तो मैं साउथ की बहुत कम फिल्में देखता हु लेकिन सर दीपक और भाई करम ने इसका नाम लिया था तो देखने का मन कर गया और ख़ुशी है कि मेरा निर्णय गलत नहीं था.साइकोलॉजिकल ड्रामा जेनर पे बनी ये फ़िल्म दिमाग हिलाकर रख देती है.फ़िल्म के लीड रोल में काम किया है "काजल अग्रवाल", "निथ्या मेनोन", "ईशा रब्बा" और "श्रीनिवास" ने और फ़िल्म की कहानी एक रेस्टॉरेंट में बैठे कुछ कस्टमर्स के इर्द गिर्द घूमती है.
ये कहानी कई छोटी छोटी कहानियो से मिलकर बनाई गयी है.एक कहानी है वॉचमन "शिवा" की जो टाइम मशीन बना कर अपने माँ बाप से मिलना चाहता है और एक अनजान लड़की जो भविष्य से आयी है, उसको ऐसा करने से रोकना चाहती है.
"नाला" जिसको खाना बनाना नहीं आता, एक बढ़िया शेफ बनकर नौकरी पाना चाहता है और रहस्यमय ढंग से मछली की भाषा समझकर एक मछली से दोस्ती कर लेता है.मछली उसकी समस्या सुलझाती है और कुकिंग में उसकी मदद करती है.
"राधा" शादी करने के लिए अपने माँ बाप से अपने प्यार "कृष" को मिलवाना चाहती है लेकिन उसके माता पिता को "कृष" नहीं पसंद क्यूंकि वो एक लड़की है.इसलिए वो उसको एक्सेप्ट नहीं करते.
"मोक्षा" एक 8 साल की बच्ची है जो जादू दिखाती है लेकिन दूसरा जादूगर "योगी" उसका मज़ाक बनाता है और खुद को ग्रेट बताता है.तब मोक्षा उसको दुनिया के सबसे ग्रेट जादूगर से मिलवाती है और "योगी" बुरी तरह उसके जाल में फंस जाता है.
"मीरा" एक वेट्रेस है जो अपने बॉयफ्रेंड के साथ मिलकर रेस्टॉरेंट में आये एक इन्वेस्टर का पैसा उड़ाना चाहते है.लेकिन समस्या तब खड़ी होती है ज़ब "मीरा" को पता चलता है कि उस रेस्टॉरेंट में एक आत्मा घूम रही है.
इन सबके बीच एक लड़की "काली" है जो अजीब परिस्थितियों में फंसी हुई है और खुद को दिलासा दे रही है.फिर क्या हुआ?क्या "शिवा" टाइम मशीन बना पाया?क्या "नाला" को नौकरी मिल पायी?क्या "राधा" के माता पिता उसकी शादी के लिए मान गए?"योगी" दुनिया के सबसे बड़े जादूगर के जाल से कैसे निकला?रेस्टॉरेंट में रह रही आत्मा से "मीरा" कैसे बची?इन सभी सवालों के जवाब के लिए आपको ये बेहतरीन फ़िल्म देखनी होंगी.
कहानी की बात करें तो शुरू के घंटा भर शायद फ़िल्म आपको समझ ही ना आये.आपको बोरियत महसूस हो सकती है या मूवी देखना बंद कर सकते है लेकिन जैसे जैसे फ़िल्म की गहराई में जायेंगे, फ़िल्म आपके दिमाग़ पे छाती जाएगी.और अंत होते होते आप इसके ऐसे दीवाने हो जायेंगे कि मेरी तरह बाकि दोस्तों को भी देखने के लिए बोलेंगे.फ़िल्म में किसी एक कलाकार की तारीफ करना मुश्किल है क्यूंकि सभी ने अपना 100% दिया है.डायरेक्टर की प्रशंशा भी जितनी की जाये कम है क्यूंकि जिस महीन तरीके से उन्होंने सारी कहानियो को एक धागे में पिरो कर फ़िल्म बनाई है वो काबिले तारीफ है.आखिर में एक ही बात कहूंगा.अगर आप दिमाग़ लगा कर फ़िल्म देखते है और कुछ अलग देखना चाहते है तो ये फ़िल्म जरूर देखें.यकीन मैने आपको पसंद आएगी.
क्यों देखें-अगर मेरी तरह उलझी हुई साइकोलॉजिकल फिल्में देखना बहुत पसंद करते हो.
क्यों ना देखें-अगर दिमाग़ लगाने के बजाये एक एंटरटेनिंग रोमांटिक टाइप फ़िल्म देखने का मन हो.
रेटिंग-8/10
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John Wick Review - Tech Reviuw


हेल्लो फ्रेंड्स, आज हम बात करेंगे एक इसी मूवी की जो सभी को पसंद आयी है, 
मुझे इस मूवी में थोड़ी KGF वाली फीलिंग आयि है क्यों के सभी उससे डरते है,तो आगे बढते हुए करते है रिव्यू जॉन विक मूवी का,
 तो मूवी में हुए ऐसा है कि एक आदमी जिसका नाम जॉन विक है वो एक स्पशियल किलर होता है,  पर उसकी वाइफ को ये काम पसंद नहीं होते है, इसलिए वो काम छोड़ देता है, पर उसकी वाइफ की बीमार होने के कारण मौत जाती है, पर उसकी लाइफ अभी भी  शांति से चल रही है, 
उसके पास एक डोग है जो उसका ख्याल रखता है वो कैसे आप मूवी में देख लेना,
 एक दिन वो उसकी कार में पेट्रोल भरवाने जाता है, उसी टाइम उसकी मुलाकात होती है, बहोत बड़े बिजनेसमैन विगो  के बेटे से उसका बेटा बोलता है "ये कार कितने की है" पर जॉन उसे बोलता है "ये कार बिकाऊ नहीं है" इससे उस लड़के को  गुस्सा आ जाता है पर उसके दोस्त उसे शांत कर लेते है, उसी रात वो जॉन विक के घर पर कार चुराने आते है, वो उसके डोग को मार देते है और जॉन को थोड़ी बहोत चोट पहोचाते है, पर उने नहीं पता होता है कि वो बहुत खतरनाक आदमी है, वो उसकी कार चुरा कर बेचने जाते है पर जहां वो जाते है वो जॉन का दोस्त होता वो कार हो देखते ही पहेचान लेता है, फिर वो विगो को फोन लगाता है और सब समझा देता है, फिर विगो उसके बेटे को बुलाता है और कहीं छुप जाते को कहेता है, पर वो नहीं सुनता है, फिर विगो जॉन को फोन लगा कार कहेता है " मेरे बेटे को छोड़ दो " पर वो नहीं मानता है, फिर विगो सभी स्पेशल किलर को जॉन विक को मारने को कहेता तो क्या होगा अब, क्या जॉन विक उसका बदला ले पाएंगा, क्या वो सभी जॉन विक को मार देंगे, इं सभी सवालों के जवाब पाने के लिए देखे  John Wick
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