Lapachhapi Review - Tech Reviuw
Lapachhapi Review - Tech Reviuw
नमस्कार मित्रो,मेरा आज का रिव्यु उन दोस्तों के लिए है जिन्होंने मेरे चैनल पे अभी तक इस फ़िल्म की स्टोरी नहीं देखी.उम्मीद है जिन्होंने वीडियो नहीं देखा उनको मेरे इस रिव्यु से फ़िल्म देखने में कुछ फायदा होगा.आज बात करने जा रहे है मराठी हॉरर फ़िल्म "Lapachhapi" के बारे में.साल 2016 में रिलीज़ हुई इस फ़िल्म को देखने का सुझाव दिया था भाई Prem Gupta ने और फ़िल्म में काम किया है "पूजा सावंत", "विजय गायकवाड़" और "उषा नाइक" जी ने और फ़िल्म की कहानी एक गॉव की कहानी पे बनी है.
फ़िल्म की कहानी है गर्भवती "नेहा" और उसके पति "तुषार" की जो निजी समस्या के चलते शहर से दूर अपनी पहचान के आदमी "भाऊराव" के साथ उसके गॉव रहने आते है."भाऊराव" की पत्नी "तुलसाबाई" उनका अच्छे से ख्याल रखती है और "नेहा" के साथ एक माँ जैसा प्यार करती है.एक रोज़ "नेहा" को एक औरत दिखाई देती है जिसके बारे में पूछने पर "तुलसाबाई" बताती है कि वो "लक्ष्मी" नाम की उसकी बहु है जिसका एक हादसे के दौरान बच्चा पेट में ही मर गया था और जो कभी माँ नहीं बन सकती.ये सुनकर "नेहा" उसको हिम्मत बंधाती है.पुराने विचारों को मानती "तुलसाबाई" जो अपने पति के बाद खाना खाती है,जादू टोना को सच मानती है,वो "नेहा" को गॉव में यहाँ वहा कभी भी दिखने वाले 3 बच्चों से दूर रहने की सलाह देती है लेकिन शहर मे पली बढ़ी "नेहा" इन बातो को दकियानूसी बता कर उसको अनसुना कर देती है.फिर एक रोज़ "नेहा" को वही बच्चे अपने साथ खेलने बुलाते है और जिज्ञासावश वो उनके पीछे चली जाती है.वहा पर मिले टेप रिकॉर्डर में बज रहा गाना जो एक माँ अपने बच्चों के लिए गा रही होती है,उसको आकर्षित करता है और वो टेप रिकॉर्डर उठा कर घर ले आती है."तुलसाबाई" उसको देख लेती है और टेप रिकॉर्डर फेंक कर उसको खरी खोटी सुनाती है.उसके बड़े व्यवहार से "नेहा" बहुत डर जाती है और "तुषार" के आने पर वहा से निकलने का फैसला कर लेती है.अपनी पत्नी के साथ गॉव छोड़ने की तैयारी करते "तुषार" पर पीछे से प्रहार होता है और वो बेहोश हो जाता है जबकि "नेहा" पर झाड़ फूंक मार कर उसको भी बेहोशी की नींद में सुला दिया जाता है.होश में आने पर वो "तुलसाबाई" को देखती है जो उसको गॉव में लगे "चुड़ैल" के श्राप के विषय में बताती है और बोलती है कि अगर वो वहा 3 दिन गुज़ार लेगी और खुद को और अपने बच्चे को चुड़ैल से बचा लेगी तो "तुलसाबाई" की बहु भी माँ बन पाएगी.इतना बोलकर वो उसको कमरे में बंद छोड़कर चली जाती है जबकि बाहर "नेहा" के पेट में पलने वाले बच्चे की गंध पाकर अभी भी वो बच्चे और चुड़ैल घूम रहे है.फिर क्या हुआ?क्या "नेहा" वहा से बचकर निकल पायी?चुड़ैल की क्या कहानी थी?क्या "तुलसाबाई" के परिवार और गॉव पर लगा श्राप मिट पाया?ये सब जानने के लिए आपको ये जबरदस्त फ़िल्म देखनी होंगी.
कहानी की बात करें तो जबरदस्त कहानी है और आपको पसंद आएगी.गॉव की पृष्ठभूमि पर फिल्मायी गयी ये फ़िल्म देखने में बढ़िया लगती है और घनी झाड़ियों के बीच बना घर,पतली पगडंडिया और रात में कमरे में दिखती खुली खिड़की देखने से डर का अहसास होता है.अंत तक चुड़ैल की कहानी जानने की इच्छा बनी रहती है.फ़िल्म के कलाकारों में "पूजा सावंत" का काम जबरदस्त है और उतनी ही उम्दा लगी है "उषा नाइक" भी जो "तुलसाबाई" के रहस्यमयी किरदार में पूरी जान फूंक देती है.नायक "विजय गायकवाड़" भी ठीक थक लगे है.बाकि कलाकारों के हिस्से लायक फ़िल्म में काम कम था तो उनका अभिनय भी अच्छा है.कुल मिलाकर फ़िल्म बढ़िया है और सबटाईटल के साथ आप इसको आराम से देख सकते है.
बेस्ट सीन-"तुषार" की गैर मौजूदगी में "तुलसाबाई","नेहा" की देखरेख के लिए उसक़े साथ ही रुक जाती है.तब आधी रात में ज़ब "नेहा" की आंख खुलती है तो उसे अपने बगल में "तुलसाबाई" नहीं दिखती लेकिन नीचे देखने पर वो उसके पैरो की तरफ बैठी होती है और जागते हुए उसे देख रही होती है.ये सीन सच में कमाल का था.
क्यों देखें-अगर एक बढ़िया हॉरर फ़िल्म देखने का मन बना रहे हो.
क्यों ना देखें-अगर मराठी भाषा की नासमझी दिक्कत लग रही हो.
रेटिंग-8/10
नोट-आज से अपने रिव्यु में बेस्ट सीन के नाम से एक नया टाईटल इस्तमाल कर रहा हु.आशा है ये नया प्रयोग आपको पसंद आएगा.आप चाहे तो फ़िल्म का अपना पसंदीदा कोई बेस्ट सीन बता सकते है.


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